Thursday, May 21, 2009

सिद्धि का रूपांतरण

बचपन से आज तक हम अपने बड़ों से किसी न किसी पंडित,बाबा या अन्य किसी ऐसे ही व्यक्ति के बारे में सुनते आए हैं कि-ये बहुत ही सिद्ध पुरूष हैं ...ये जो चाहें वो कर सकते हैं...वगेरह,वगेरह......शायद इसी वजह से हमारी नज़र में वही व्यक्ति सिद्ध कहलाने लायक हैं,जिन्होंने गेरवे वस्त्र पहने हों...और उनकी जटाएं हों.हम कई बार ऐसे लोगों के द्वारा ठगे भी जाते है....लेकिन फिर भी कोई सुधर नही है।दूसरी ओर अगर हम अपनी इस सिद्ध कि परिभाषा से बाहर निकल कर देखें तो हमें कई सिद्ध हमारे आस-पास यूँ ही मिल जायेंगे.उन्हें ही अगर हम अपनी परिभाषा में रख कर देखें तो ये उसमें कहीं भी फिट नही बैठते.

जैसे कि इसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है....हम सभी का जाना पहचाना कलाकार....अमिताभ बच्चन,हममें से कई लोगों के लिए वो एक प्रेरणा स्त्रोत हैं....कई तो उनसे इस कदर प्रभावित हैं कि उनकी बीमारी कि ख़बर सुनकरउनके लिए दुआ प्रार्थना करते हैं....यह कर्म जाती-धर्म से ऊपर उठ कर होता है....सभी धर्म के लोग उनके लिए समान प्रेम भाव रखते हैं.यहाँ अगर मैं अमितजी को एक महान सिद्ध कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी.मुझे उनको एक "सिद्ध कला योगी "कहने में कोई संकोच नही होगा.अगर वो कला के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा विकसित नही करके किसी धर्म या अन्य क्षेत्र में लगे होते तो भी शायद वे उतने ही सफल और सिद्ध होते.इस विषय को समझने के लिए ये उदाहरण सटीक था,इसलिए ही उपयोग किया गया इसे उदाहरण कि तरह ही लेना चाहिए न कि झूठी चापलूसी के रूप में.

इसी तरह विश्व सुंदरियां को भी इस विषय में उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है....उनकी वेशभूषा चाहे कैसी भी रहे....शालीन या अश्लील...उन्हें वहाँ तक पहुँचने में उनकी "रूप सिद्धि" साधना का अपना स्थान है.इससे भी सरल उदहारण हमें अपने घर के आस-पास ही मिल जाएगा....कोई भी शरारती बच्चा,जो कि अन्य बच्चों कि अपेक्षा ज्यादा शरारती है...और उसके पास उसका अनुसरण करने वाले बच्चों का समूह भी होता है.इस शरारती बच्चे को यदि "शरारत सिद्ध" कहें तो कोई बड़ी बात नही होगी,लेकिन उसकी ये सिद्धि अनियंत्रित कहलाएगी....जिसे सही दिशाधारा की आवश्यकता है.इसलिए ही प्राचीनकाल में "शरारत सिद्ध"कृष्ण को संदीपनी आदि गुरुओ के पास भेजा गया था.इसी तरह कई और भी उदाहरण हैं जहाँ गुरु बच्चों को सही दिशाधारा देकर उनकी सिद्धियों को जागृत करके उन्हें को वापस करते देते थे,जैसे चाणक्य और चन्द्रगुप्त...

सिद्धि हर एक के पास होती है,उसका सही दिशा में उपयोग करना हमारे हाथ में होता है.एक ही माता-पिता की संतान अलग-अलग प्रकृति के लोगों के संपर्क में आकर उन्ही की तरह बन गए...ऐसी कई कहानियाँ हमने सुनी हैं और अपने आस-पास देखी भी है.इसी तरह कई ऐसे व्यक्ति भी हैं,जो कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी सफल व्यापारी,कलाकार आदि बन चुके हैं....ये भी कह सकते हैं की उन्होंने ख़ुद को सिद्ध किया है

कहने का अर्थ है कि सिद्धि पाने के लिए साधना कि जरूरत तो होती है लेकिन उसके लिए ये जरूरी नही की बैठ कर पूजा पाठ की जाए.....साधना अपने काम की भी की जा सकती है....जैसा की उपरोक्त उदाहरणों से समझा जा सकता है.जरूरत है अपने अन्दर मौजूद सिद्धियों को पहचानने की और उन्हें साधना के द्वारा सिद्ध करने की.

2 comments:

  1. ठीक ही तो है

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  2. sharmaji,
    aapko dhnyavaad jo aap mere blog par aaye aour apna samay mujhe diya/
    aapne ek ese subject ko chuna he jis par tark-vitark kaafi hote aaye he/ so yadi me apni baat kahunga to vitark ko rasta dunga/ fir bhi kahunga jaroor-
    sidhhi pane ke liye saadhna ki jaroorat hoti he, iske liye beth kar paath-pooja karne ki jaroorat nahi hoti,,,ynha aapko thoda saa tokunga, saadhnaa kaam ki bhi hoti he, paath-pooja...bhi kriya he, saadhnaa ke liye ekagrta jaroori hoti he, paath-pooja ekagrata peda karti he, jis tarah apne kaam se bhi saadhnaa hoti he, ynha kaam ekagrta peda karne ke liye upukt hua he//saadhn..saadhnaa ke liye saadhan ki jaroorat he, saadhn kya? pooja-paath ko aap atirikt naa le, kyoki vo bhi saadhan hi he//
    vese aapne vichaar achche diye he
    sadhuvaad

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