Wednesday, May 13, 2009

विष और धर्म

धर्म और विष में कुछ समानता है।जिस तरह विष हिंदू,मुसलमान,सिख,ईसाई सब पर समान प्रभाव दिखाता है.विष खाने वाले की मृत्यु निश्चित है;उसी तरह धर्म कोई भी हो उसकी राह पर सही तरीके से चलने पर जो लाभ हिंदू को मिलेगा;वही लाभ मुसलमान,सिख ईसाई को भी मिलेगा.किसी भी पद्धति से कोई भी मनुष्य धर्मं को सही तरीके से अपनाएगा,उसका सही लाभ उसको अवश्य मिलेगा.सवाल धर्म को सही तरीके से अपनाने का है,तिलक,टोपी,दाढ़ी मूंछ की स्टाइल अलग-अलग बनने की जरूरत नही है और न ही इसके लिए किसी भी अन्य प्रकार की भिन्न-भिन्न क्रियाकलाप कर्मकांड करने की जरूरत है.यह करना तो ठीक उसी प्रकार है,जैसे एक ही तरह की विष की शीशी पर अलग-अलग कम्पनियाँ अलग-अलग नाम क्यूँ न लिखें पर है तो वह विष ही.रामछाप विष,रहीम छाप विष से किसी भी तरह कम घातक नही है,क्यूंकि दोनों विष ही हैं,सिर्फ़ लेबल अलग हैं.उसी तरह से सही धर्म पर चाहे अलग लेबल...... यथा वेद,पुराण कुरान...क्यूँ न लगा हो उनका प्रभाव एक ही होता है....सब को उसी तरह तरह लाभ भी प्राप्त होगा..चाहे कोई भी धर्म वाला,किसी भी धर्म के मार्ग पर ही क्यूँ न चले.सबसे पहले मानव उत्पन्न हुआ और मानव धर्म चला था....बाद में वह धर्म संकीर्ण होकर हिंदू,मुसलमान आदि में बांटा गया।
(सर्व अधिकार सुरक्षित)

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