Wednesday, May 13, 2009

सिद्धि

सिद्ध पुरुष हर धर्म ,हर जाति में होते हैं,कोई उनको संत,महात्मा,फ़कीर,वली कुछ भी कहे उनको इससे कोई फर्क नही पड़ता...अगर सिद्धि किसी एक प्रकार के धर्म पर चलकर मिलती तो दूसरे धर्मों में सिद्ध पुरुष नही होने चाहिए थे........पर ऐसा नही है.....हर धर्म में सिद्ध पुरुष हुए हैं......तो सिद्धि कैसे मिलती हैं?
सही मायने में अगर कहा जाए तो सिद्धि प्राप्त ही नही होती.....प्राप्त तो वह वस्तु होती है,जो हमारे पास नही है.......पर जो वस्तु हमारे पास है वह हमारी है.सिद्धि भी हर मनुष्य को जन्मजात ही प्राप्त होती है और उसका उपयोग वह विभिन्न तरह से करता है.किसी में वह सुप्त.....तो किसी में जागृत होती है;सुप्त सिद्धियों को जागृत भी किया जा सकता है...और जागृत सिद्धियों को दुरूपयोग करके सुप्त भी किया जा सकता है.एक मजदूर अपनी सिद्धि को मजदूरी करके उपयोग करता है,पर यदि उसको सही तरह से उपयोग करता है तो वह उससे सफल व्यापारी,डॉक्टर,कलाकार बन जाता है और दुरूपयोग करके शराबी,व्यभिचारी बनकर अपने आपको नष्ट भी कर सकता है।
गुरु सुप्त सिद्धियों को जागृत करता है,पर यहाँ उस गुरु को हम मठ,तीर्थ,प्रवचन में ही खोजते हैं,ऐसा हमारा अंधविश्वास बन चुका है........पर सही अर्थों में जो हमारी सुप्त शक्तियों को जागृत कर सके वही गुरु है...यही सत्य है।
जैसे एक साधारण सा दिखने वाला बीज अपने अन्दर असीम वट वृक्ष छुपाये रहता है....उसी तरह हमारे जैसे साधारण से दिखने वाले नगण्य व्यक्ति भी अपने अन्दर उसी तरह की असीम शक्ति,जो हमें इश्वर ने दे कर भेजी है,छुपाये बैठे हैं.कभी भी एक मूर्ख कालीदास बन सकता है और एक कायर वीर और भी बहुत कुछ......जैसा चाहे वैसा हम बन सकते हैं.बीज को किसान यदि ज़मीन में न भी बोए तो भी वह वृक्ष बनेगा,क्यूंकि जंगल में जहाँ किसान नही होते वहाँ बीज स्वयं गिरते रहते हैं और वृक्ष बनते ही हैं,वृक्ष बनने की क्षमता उसमे होती है,वही फलीभूत होती है.हाँ.......कुछ बीजों को विशेष तरीके से सिद्ध करके फसल उपजाई जाती है.किसान अर्थात बीज का गुरु चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित जैसा भी हो..जितना अनुभवी और योग्य होगा बीज उसी तरह की सिद्धि को प्राप्त होगा......यही हमारे साथ भी होता है,सही मार्गदर्शन के अभाव में हम चोर,डाकू,व्यभिचारी बनते हैं,तो कभी अच्छी दिशाधारा का ज्ञान कराने वाला कैसा भी व्यक्ति क्यूँ न हो दस्यु को वाल्मिकी में और अंगुलिमाल को बौद्ध भिक्षु में बदल सकता है.दिशाधारा व्यक्ति नही शक्ति होती है.हम उसको व्यक्ति मानकर सीमित करके सीमाबद्ध कर देते हैं.दिशाधारा जड़,चैतन्य,मूर्ख,बुद्धिमान किसी से भी प्राप्त हो सकती है और दत्तात्रेय की तरह अनेक गुरु के रूप में भी प्राप्त होती है,पर हम यह सोचें कि गुरु वह है जो ज्ञान देता है...वह कोई भी हो सकता है.हमारे अन्दर सही विचार आते हैं ..तो वो ही हमारे सच्चे गुरु हैं.......यह बात हम जितनी जल्दी समझ लेते हैं,उतनी ही हम सिद्धियों के नजदीक पहुँच रहे होते हैं.....जितना अधिक उस पर अमल करते हैं,उतने ही सिद्धिवान और विभूतिवान बनते जाते हैं.
(सर्व अधिकार सुरक्षित)

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