Monday, June 1, 2009

अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ते कदम

श्रीगुरुवेनमः

अज्ञान हमारे अन्दर तबतक बना रहता है जबतक हम अपने अंदरकी सचाई को दबाकर केवल झूठ को ही बाहरप्रकाशित करते रहते हैं जबतक हम ऐसा करते रहतेहैं तबतक हम सचे सुख से हमेशा दूर होते जाते हैं.अपनी इसझूठी मान्यता में इस कदर रम जाते हैं की फ़िर सच्चाई हमको झूठी और बकवास लगने लगती है.फ़िर उस झूठ को
सच प्रमाणित करने में अपनी शक्ति नष्ट करते रहतें हैं , हमारा जीवन एक आडम्बर का पुलिंदा बन कर रह जाताहै.हर समय हम हमेशा अपने को वो दिखाते रहतें जो हम नहीं होते .अपने मन में यह झूठा भ्रम पलते रहते हैं कीलोग हमारी झूठ को हमारी तरह ही सच मान रहें हैं, यह हमारी दूसरी सबसे बड़ी भूल होती है ,सही में हम जो होतें हैंवही लोग हम को समझते हैं। कभी कोई जब हमरी गलती का हमें अहसास करता है तब हमारे झूठे अंहकार परचोट लगाती है और हम तिलमिला जाते हैं और परेशान हो जाते हैं ;उस को हमेशा के लिए अपना शत्रु बना लेतें हैंयह हमारी सबसे बड़ी भूल होत्ती है.जब हम धीरे धीरे कभी दुखी होतें हैं;जो होना ही था ,तब उस आदमी के प्रति एकगुप्त आदर हमारे मन में उत्पन होता है,पर हम झुकना नही चाहते,इस समय हम ज्ञान के प्रकाश का दर्शन मात्र कररहें होते हैं यहीं से हम अज्ञान से ज्ञान की और पहला कदम बढाते हैं ,अब और कितना आगे बढना है यह सब केवलहम पर सिर्फ़ हम पर निर्भर करता है,यहाँ हम ही हमारी सबसे अधिक मदद कर सकते हैं

1 comment:

  1. सत्य कथन...अज्ञान से बढकर इन्सान का कोई भी शत्रु नहीं।

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